प्रथम विश्व युद्ध के कारण तथा परिणाम effects and reasons of first world War


 प्रथम विश्व युद्ध के कारण तथा परिणाम




भूमिका


मानव जाति के इतिहास में प्रथम विश्व युद्ध पहला संपूर्ण युद्ध था । इस युद्ध में भाग लेने वाले देशों के लिए सभी संसाधन जुटाए गए थे। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पहली बार पनडुब्बियों, जहाजों हवाई, जहाज तथा विषैली गैसों का प्रयोग किया गया था । प्रथम विश्वयुद्ध में विश्व की संपूर्ण जनसंख्या ने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों रूप से भाग लिया था । 28 जुलाई 1914 का महायुद्ध विश्व इतिहास की अत्यंत भयंकर एवं विनाशकारी घटना है । परमाणु बमों के प्रयोग से पूर्व ही प्रथम विश्व युद्ध के अस्तित्व पर प्रश्न उठे कि क्या किसी राष्ट्र के हित की अभिवृद्धि के लिए युद्ध का सहारा लेना उचित एवं वैद्य है ? प्रथम विश्वयुद्ध में विश्व के कुल 36 राष्ट्रों ने भाग लिया था इनमें से 32 मित्र राष्ट्र थे तथा 4 धुरी राष्ट्र थे । इस महायुद्ध के 4 वर्षों के दौरान भरपूर मात्रा में अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग किया गया तथा दो करोड़ 90 लाख सैनिक घायल हुए तथा एक करोड़ सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा ।

प्रथम विश्व युद्ध का आरंभ


प्रथम विश्वयुद्ध 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला इस युद्ध के पीछे एक मुख्य घटना है 28 जून 1914 को ऑस्ट्रेलिया के सम्राट के भतीजे व ऑस्ट्रेलिया के राज्य शासन के उत्तराधिकारी आर्च ड्यूक फ्रांसिस की हत्या बॉस इंडिया की राजधानी ने सरबिया युवक द्वारा की गई थी ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को 10 सूत्रीय पत्र पर 48 घंटे में हस्ताक्षर करने की मांग की परंतु सरबिया ने इस मांग पत्र कि अनुचित मांगों को अस्वीकार कर दिया जिसके फलस्वरूप और प्रिया ने 28 जुलाई 1914 को सरबिया पर आक्रमण कर दिया जर्मनी ने ऑस्ट्रिया का पक्ष लिया तथा 3 अगस्त 1914 को फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी 4 अगस्त को इंग्लैंड ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तथा अमेरिका ने 6 अप्रैल 1917 को युद्ध की पृष्ठभूमि पर मित्र राष्ट्रों के पक्ष में पैर रखा जिसके परिणाम स्वरूप युद्ध की स्थिति पलट गई और मित्र राष्ट्रों की जीत हुई ।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में यूरोपीय महाद्वीप का राजनीतिक वातावरण अत्यंत तनावपूर्ण हो गया था इसी तनावपूर्ण स्थिति के कारण यूरोप में महायुद्ध का विस्फोट हुआ जिसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदाई है:-

  • गुप्त व कूटनीतिक संधिया
  • उग्र सैनिकवाद की भावना
  • उग्र राष्ट्रवाद की भावना
  • साम्राज्यवाद की भावना
  • जर्मनी की पूर्वी समस्या के प्रति नीति
  • विलियम केसर द्वितीय की नीति
  • तत्कालिक कारण

प्रथम विश्व युद्ध के कारणों का विवेचन

  • गुप्त व कूटनीतिक संधिया = यूरोपीय शक्तियों के बीच हुई गुप्त व कूटनीतिक संधिया विश्व युद्ध का प्रथम कारण थी बिस्मार्क ने फ्रांस का यूरोपीय महाद्वीप पर शक्ति कायम करने और जर्मनी को सुरक्षित बनाए रखने के लिए रूट और प्रिया इटली रुमानिया आदि के साथ कूटनीतिक संध्या की बिस्मार्क के पतन के पश्चात भी संधियों का सिलसिला कायम रहा 1844 में रूस और फ्रांस के बीच द्विपक्षीय संधि संपन्न हुई इंग्लैंड में भी पृथक्करण की नीति अपनाकर जापान फ्रांस रूस के साथ संधि करके जर्मनी और इटली की कच्ची सड़कों के विरुद्ध इंग्लैंड फ्रांस व रूस  की शक्तिशाली सड़क का निर्माण हुआ कूटनीतिक संधियों के कारण शत्रुता कटता की भावना का फैलाव हुआ जिससे युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई ।

  • उग्र सैनिकवाद की भावना का विकसित = 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोप के लगभग सभी देशों ने अपनी सैनिक शक्ति को विकसित करने का प्रयास किया 1890 ईस्वी के पश्चात जर्मनी ने अपनी जल सेना को इंग्लैंड से अधिक विस्तृत करने की घोषणा की जिससे इंग्लैंड और जर्मनी के बीच शत्रुता उत्पन्न हो गई जर्मन सम्राट विलियम द्वितीय ने सैनिक रूप से जर्मनी को विश्व शक्ति बनाने की घोषणा की तथा अपने उग्र सैनिक वादी स्वरूप को स्पष्ट कर दिया नवीनतम वैज्ञानिक आविष्कारों से प्रभावित होकर यूरोपीय देशों ने विशाल पैमाने पर विनाशकारी अस्त्रों शस्त्रों का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया हथियारों की होड़ तथा उग्र सैनिक वाद की भावना प्रथम विश्व युद्ध का कारण बनी ।

  • राष्ट्रवाद की भावना = युद्ध का आधारभूत कारण यूरोप के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना की प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व ही जर्मनी की सरकार व जनता में उग्र राष्ट्रवादी भावना इतनी प्रबल हो चुकी थी कि वे जर्मन राष्ट्र को विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र मानते थे जर्मन की यह भावना विश्व बंधुत्व हेतु खतरा की इसी भावना के आधार पर प्राण अपने खोए हुए प्रदेश अलसाके के और लॉरेन को वापस प्राप्त करना चाहता था बाल्कन राज्यों की राजनीति को भी उग्र राष्ट्रवाद की भावना ने अत्यधिक प्रभावित किया था इंग्लैंड जर्मनी तथा यूरोप के लगभग सभी देशों के मध्य तनाव में कटता उत्पन्न करने  में इस भावना की विशेष भूमिका थी ।

  • जर्मनी की पूर्वी समस्या के प्रति नीति = विलियम केसर ने जर्मनी को विश्व शक्ति बनाने के उद्देश्य से पूर्वी समस्या में रुचि लेना शुरू कर दिया तथा टर्की के साथ मित्रता स्थापित कर ली जर्मनी बर्लिन बगदाद रेलवे लाइन के निर्माण की आज्ञा टर्की से लेना चाहता था जिससे जर्मनी के व्यापार वाणिज्य के विकास में सहायता मिल सकती थी परंतु इंग्लैंड को जर्मनी की इस योजना के पूर्ण हो जाने से भारत व एशिया के अन्य स्थानों पर ब्रिटिश राज्य को खतरा उत्पन्न हो सकता था इंग्लैंड ने इस नीति का विरोध किया जिसके फलस्वरूप इंग्लैंड और जर्मनी के मध्य शत्रुता की भावना उत्पन्न हुई ।

  • विलियम केसर द्वितीय की नीति = 1890 ईस्वी में बिस्मार्क के पतन के पश्चात विलियम केसर द्वितीय ने जर्मनी की आंतरिक व विदेश नीति में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किए विलियम केसर द्वितीय विश्व राजनीति में जर्मनी की निर्णायक भूमिका चाहता था उसने पान जर्मन लीग की स्थापना की जिसका उद्देश्य ऑस्ट्रिया बेल्जियम स्विजरलैंड होलेंड व अन्य देशों में रहने वाले जर्मन जाति के लोगों को संगठित करना था उसने युद्ध पोतों के सुविधाजनक आवागमन के लिए कील नहर कुदवाई उसने जलसेना लीग की स्थापना की जल और थल सेना के विकास हेतु राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा भाग व्यय कर दिया जर्मनी द्वारा जल सेना के विस्तृत किए जाने की घोषणा के साथ जल सेना की दृष्टि से सर्वोच्च देश इंग्लैंड के साथ उसकी कटता उत्पन्न हो गई इंग्लैंड ने भी पृथक्करण की नीति को त्यागकर जापान ट्रांसफर उसके साथ जर्मनी की महत्वाकांक्षाओं को रोकने के उद्देश्य से संध्या कर ली जिससे यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया जिसका नेतृत्व जर्मनी व इंग्लैंड ने किया ।

  • युद्ध विस्फोट हेतु उत्तरदाई तात्कालिक कारण = साम्राज्यवाद उग्र राष्ट्रवाद गुप्त संधियों आदि के कारण संपूर्ण यूरोप में अशांति व अव्यवस्था की स्थिति पहले से ही कायम थी किंतु 28 जून 1914 को ऑस्ट्रेलिया के सम्राट के भतीजे व राज सिंहासन के उत्तराधिकारी आरसीडीयू फ्रांसिस की हत्या बोस्निया की राजधानी में ऑस्ट्रिया की जनता ने कर दी जिस का आरोप सरबिया पर लगाया गया ऑस्ट्रिया ने सरबिया को 10 सूत्रीय मांग पत्र पेश कर उसे 48 घंटे में स्वीकार करने से मना कर दिया इससे इसके फलस्वरूप ऑस्ट्रिया ने 28 जुलाई 1914 को सरबिया पर आक्रमण कर दिया गया जर्मनी ने ऑस्ट्रिया का पक्ष लिया 3 दिन बाद रूस और फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी तथा 5 अगस्त 1914 को ग्रेट ब्रिटेन इस युद्ध में शामिल हो गया इस प्रकार इस युद्ध ने विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया।


प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम


प्रथम विश्वयुद्ध अत्यंत विनाशकारी और भयंकर घटना की हर घटना से कुछ परिणाम निकलते हैं प्रथम विश्वयुद्ध के राजनीतिक ,आर्थिक तथा सामाजिक परिणाम निम्नलिखित है:-


राजनीतिक परिणाम

  1. राजतंत्र की सरकारों का पतन
  2. राष्ट्रीयता की भावना का विकास
  3. अंतरराष्ट्रीय ता की भावना का विकास

सामाजिक परिणाम

  1. स्त्रियों की दशा में सुधार
  2. जातीयता की समाप्ति
  3. मानव जीवन का विनाश

आर्थिक परिणाम

  1. धन का विनाश
  2. क्रय शक्ति में कमी
  3. करों में वृद्धि
प्रथम विश्वयुद्ध के राजनीतिक परिणाम

  • राजतंत्र सरकारों का पतन =प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात अनेक देशों में एक तंत्रीय शासन जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया गया जिसके फलस्वरूप यूरोपीय महाद्वीप तथा अन्य देशों में प्रचलित राजतंत्र समाप्त हो गया जिसमें जर्मनी ऑस्ट्रिया रूस के राजवंश प्रमुख से 1923 ईस्वी में टर्की के सुल्तान के गद्दी त्यागने के पश्चात आसमानी राजवंश का भी पतन हो गया था पोलैंड बुलगारी आ से को स्लोवाकिया व फिनलैंड में भी निरंकुश शासन समाप्त हो गया यद्यपि इंग्लैंड स्पेन मेरा संत्री सरकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा किंतु युद्ध समाप्त होने के पश्चात कुछ समय बाद वहां भी प्रजातंत्र ई करण की प्रक्रिया आरंभ हो गई  ।

  • राष्ट्रीयता की भावना का विकास = प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात संपूर्ण यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने के कारण निश्चित किया गया कि किसी देश की सीमाओं का निर्धारण करते समय वह देश की सभ्यता संस्कृति रहन-सहन रीति-रिवाजों आदि का विशेष ध्यान रखा जाएगा अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने भी पारित शांति सम्मेलन में 14 सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए आत्म निर्णय के सिद्धांत पर विशेष रूप से बल दिया इसी सिद्धांत का को के आधार पर चेकोस्लोवाकिया पोलैंड फिनलैंड नामक राज्यों का गठन किया गया इसके अलावा कुछ राज्य ऐसे थे जहां आत्मनिर्भरता के सिद्धांत को लागू नहीं किया और अल्पसंख्यकों की भावनाओं की अवहेलना कर उन्हें बहुत संख्या को की दया पर छोड़ दिया गया किंतु राष्ट्रीयता की भावना का संचार होने के कारण इन राज्यों ने विद्रोह करना प्रारंभ कर दिया ।

  • अंतरराष्ट्रीय ताकि भावना का विकास = प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी परिणामों से यह सिद्ध हो गया कि देश में यथार्थ विश्व में शांति और सद्भावना स्थापित करने हेतु आपसी प्रेम और एकता की आवश्यकता है यूरोपीय देशों में धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय था की भावना का विकास होने लगा जिसके आधार पर 1919 ईस्वी में पेरिस शांति सम्मेलन का आयोजन किया गया इस सम्मेलन में भविष्य में विभिन्न देशों की समस्याओं को आपस में बातचीत के माध्यम से हल करने के लिए एक स्थाई अंतरराष्ट्रीय संस्था की स्थापना का निर्णय लिया गया जिसके परिणाम स्वरुप राष्ट्रीय संघ यूएन की स्थापना की गई ।


प्रथम विश्व युद्ध के सामाजिक परिणामों का विवेचन

  • स्त्रियों की दशा में सुधार = प्रथम विश्व युद्ध के दौरान स्त्रियों को घर की चारदीवारी से निकलकर अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार करने का अवसर प्राप्त हुआ तीनों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया तथा वह अपने सामाजिक महत्व का अनुभव करने लगी युद्ध काल के दौरान सैनिकों तथा युद्ध सामग्री की मांग में वृद्धि होने लगी सैनिकों की मांग में बढ़ोतरी होने के कारण उद्योगों में कार्य कर रहे पुरुष मजदूरों को सैनिक बनाया गया तथा युद्ध सामग्री की पूर्ति हेतु उद्योगों में पुरुषों के स्थान पर महिलाएं कार्य करने लगी तीनों ने आर्थिक विकास में सहयोग देने के साथ-साथ राजनीतिक गतिविधियों में भी भाग लेना शुरू कर दिया तीनों में आत्मविश्वास और आत्म निर्णय की भावना जागृत होने होने के कारण व पुरुषों के समान अधिकार व सुविधाओं की मांग सरकार से करने लगी ।

  • जातीयता की समाप्ति = 1914 ईस्वी में सभी देश जातीय नफरत व रंगभेद की भावना से ग्रसित थे इसी आधार पर ग्रेट ब्रिटेन के लोग भारत और अफ्रीका वासियों से घृणा करते थे तथा जर्मन विक्रांत जगत की जनता स्वयं को अन्य देशों की जनता से सर्वश्रेष्ठ समझने की विश्वव्यापी स्तर पर लड़े जाने वाले युद्ध में सभी जातियों के व्यक्तियों ने भारी तादाद में एक साथ भाग लिया तथा जाती है कटुता की भावना को समाप्त करने की दिशा में भी प्रथम विश्व युद्ध का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।

  • मानव जाति का विनाश = प्रथम विश्व युद्ध के घातक परिणामों के कारण मानव जाति का भारी संख्या में विनाश हुआ कुल सैनिकों में से लगभग एक करोड़ 30 नौ लाख सैनिकों की मृत्यु हो गई तथा करीब 100000 सैनिक घायल हुए 7000000 सैनिक तो अपंग हो गए इस विनाशकारी युद्ध में बहुतायत संख्या में जनता का भी भारी विनाश हुआ इस विकराल युद्ध में अनेक बेगुनाह लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

प्रथम विश्वयुद्ध के आर्थिक परिणामों का विवेचन

  • धन का विनाश - प्रथम विश्वयुद्ध के समय लगभग 10 खरब की धनराशि का व्यय किया गया इतने अब व्यय के कारण विश्व भर में आर्थिक असंतुलन उत्पन्न हो गया हजारों एकड़ फसलें नष्ट हो गई खेतों की उपजाऊ क्षमता समाप्त हो गई रेल मार्ग टूट गए कारखाने मकान दुकान में सभी कुछ नष्ट हो गया जिसके परिणाम स्वरूप लोगों को गरीबी और बेरोजगारी की समस्या का सामना करना पड़ा मार्च 1915 ईस्वी में केवल इंग्लैंड का युद्ध पर किया गया व्यय 1500000 पोंड प्रतिदिन जो 1918 में बढ़कर 6500000 पाउंड प्रति दिन हो गया धन विनाश के कारण पूरे विश्व में आर्थिक रूप से अव्यवस्था उत्पन्न हो गई।

  • करों में वृद्धि - इस विनाशकारी युद्ध में अत्यंत धन का विनाश हुआ था जिसके कारण युद्ध की समाप्ति तक सभी देशों पर राष्ट्रीय ऋण का भार बहुत अधिक बढ़ गया इन ऋणों को चुकाने के लिए देश की सरकारों ने वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाने वाले करों में वृद्धि कर दी जिसके कारण जनता में असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई ।


निष्कर्ष
प्रथम विश्वयुद्ध अत्यंत विनाशकारी युद्ध ने पूरे विश्व को दो भागों में विभाजित कर दिया यह विश्व का प्रथम विनाशकारी तथा घातक युद्ध का प्रथम विश्वयुद्ध का मुख्य कारण था आपसी तालमेल में कमी होना एक देश का अन्य देश से प्रतिस्पर्धा करना जिसके कारण विश्व की जनता को प्रथम विश्वयुद्ध के अत्यंत विनाशकारी परिणामों में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

Written By
Namya katyal ...

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