महाराणा प्रताप सिंह की जीवन गाथा
BIOGRAPHY OF MAHARANA PRATAP SINGH

महाराणा

प्रारंभिक जीवन
- महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी में कुंभलगढ़ के किले राजस्थान में हुआ हिंदू तिथि के अनुसार जेष्ठ माह के तीसरे दिन इनका जन्म हुआ।
- कुंभलगढ़ का किला यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल है ।
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कुम्भलगढ का किला |
- महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय।
- माता का नाम रानी जयवंता कनवर ।
- महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था।
- महाराणा प्रताप का बचपन भील नामक समुदाय के साथ बिता ।
- वीर महाराणा प्रताप को भील समुदाय के लोग कीका कहकर पुकारते थे ।
- किका का अर्थ भील समुदाय के लिए होता है पुत्र।
- महाराणा प्रताप को अपना पुत्र मानते थे।
- भील समुदाय से ही उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने की कला में निपुणता हासिल हुई।
- महाराणा प्रताप अत्यंत बलशाली थे उन की ऊंचाई 7 फुट 5 इंच थी।
- महाराणा प्रताप अपने साथ हमेशा दो तलवारें रखा करते थे क्योंकि उनका मानना था कि यदि दुश्मन के पास तलवार नहीं हुई तो वह उसे दे देंगे परंतु निहत्थे पर कभी भी वार नहीं करेंगे।
कुंवर प्रताप से महाराणा प्रताप बनने का सफर
- महाराणा के पिता उदय सिंह की मृत्यु के पश्चात राणा उदय सिंह की दूसरी पत्नी अपने पुत्र जगमाल को उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी ।
- परंतु मंत्री और जनता द्वारा जगमाल के राज्य अभिषेक पर प्रश्न उठाए गए ।
- कायदे से प्रताप जेष्ठ पुत्र होने के नाते महाराणा प्रताप मेवाड़ की गद्दी के उत्तराधिकारी थे ।
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को गोगुंदा में संपन्न हुआ परंतु उनका दूसरी बार राज्याभिषेक पूरी विधि विधान के साथ 1572 ईस्व में कुंभलगढ़ के किले में जोधपुर के राठौर शासक रामचंद्र सेन की उपलब्धि में हुआ।
- महाराणा प्रताप सिंह का भाई जगमाल मेवाड़ का राजा ना बन सकने से क्रोधित होकर बदले की आग को बुझाने के लिए अकबर के खेमे में जा मिला।
- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया उनका पूरा नाम है ।
- महाराणा प्रताप के कुल 11 विवाह हुए
- सबसे बड़ी रानी का पुत्र अमर सिंह था जो महाराणा प्रताप सिंह के मृत्यु के पश्चात मेवाड़ की राजगद्दी पर आसित हुआ।
- महाराणा के पिता उदय सिंह की मृत्यु के पश्चात राणा उदय सिंह की दूसरी पत्नी अपने पुत्र जगमाल को उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी ।
- परंतु मंत्री और जनता द्वारा जगमाल के राज्य अभिषेक पर प्रश्न उठाए गए ।
- कायदे से प्रताप जेष्ठ पुत्र होने के नाते महाराणा प्रताप मेवाड़ की गद्दी के उत्तराधिकारी थे ।
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को गोगुंदा में संपन्न हुआ परंतु उनका दूसरी बार राज्याभिषेक पूरी विधि विधान के साथ 1572 ईस्व में कुंभलगढ़ के किले में जोधपुर के राठौर शासक रामचंद्र सेन की उपलब्धि में हुआ।
- महाराणा प्रताप सिंह का भाई जगमाल मेवाड़ का राजा ना बन सकने से क्रोधित होकर बदले की आग को बुझाने के लिए अकबर के खेमे में जा मिला।
- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया उनका पूरा नाम है ।
- महाराणा प्रताप के कुल 11 विवाह हुए
- सबसे बड़ी रानी का पुत्र अमर सिंह था जो महाराणा प्रताप सिंह के मृत्यु के पश्चात मेवाड़ की राजगद्दी पर आसित हुआ।
मुगलों और राजपूतों में टकराव
- मुगल सम्राट अकबर संपूर्ण भारत देश पर अपना अधिकार जमाना चाहता था ।
- उसने अपने शासनकाल के दौरान लगभग लगभग सभी राजपूतों को अपना गुलाम बना लिया।
- परंतु मेवाड़ के महान शासक वीर महाराणा प्रताप ने अकबर के आगे कभी घुटने नहीं टेके।
- अकबर बिना युद्ध महाराणा प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था जिसके कारण उसने प्रताप को समर्पण करने हेतु समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए ।
- जलाल खा 1572
- मानसिंह 1573
- भगवंत दास सितंबर 1573 फरवरी
- टोडरमल दिसंबर 1573
टोडरमल अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक रत्न था।
चारों राजदूत विभिन्न विभिन्न समय पर महाराणा प्रताप को समझाने पहुंचे पर महाराणा प्रताप ने समर्पण करने से अस्वीकार कर दिया समर्पण ना करने के कारण हल्दीघाटी युद्ध हुआ।
हल्दीघाटी युद्ध
- 19 जून 1576 को यह युद्ध लड़ा गया।
- महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच।
- यह युद्ध केवल 4 घंटों में समाप्त हो गया।
- महाराणा प्रताप के पक्ष से इस युद्ध की अगुवाई हकीम खां सूरी ने की थी ।
हकीम खां सूरी के परिवार का मुगलों से बहुत पुराना बैर था क्योंकि मुगलों ने के शेरशाह सूरी को हराया था वह बदला लेना चाहता था इसी कारण महाराणा प्रताप सिंह की सेना में भर्ती हुआ था।
- महाराणा प्रताप की सेना में भील आदिवासी समूह के लगभग 400 से 500 सैनिक भी शामिल थे।
- जिसका नेतृत्व भील राजा राव पूंजा जी कर रहे थे।
- वह शुरू से ही राजपूतों के स्वामी भक्त रहे।
- अकबर की ओर से राजा मानसिंह को सेनापति बनाकर युद्ध लड़ने भेजा गया वह स्वयं इस युद्ध में शामिल नहीं हुआ।
- इस युद्ध में एक राजपूत दूसरे राजपूत के खिलाफ लड़ रहा था।
- राजस्थान के इतिहासकार जेम्स के अनुसार राजपूतों की सेना में 22000 सैनिक थे जबकि अकबर की सेना में लगभग लगभग 80000 सैनिक थी।
- कुल 4 घंटे तक दोनों ही साम्राज्य की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ।
- महाराणा प्रताप सेना से भले ही कमजोर है परंतु वे स्वयं इतने ताकतवर थे कि उनके बाली और सुरक्षा कवच को मिलाकर उनका वजन 206 किलो था।
- इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े चेतक को राजा मानसिंह के नजदीक लाते हुए उस पर चढ़ाई कर उस पर वार किया चेतक मानसिंह के हाथी के ऊपर चढ़ गया महाराणा के वार से मानसिंह तो बच गया परंतु महावत मारा गया और हाथी से उतरते वक्त चेतक के पैर में भीषण चोट लग गई।
- चेतक ने अपने स्वामी महाराणा प्रताप सिंह की जान बचाने के लिए घायल अवस्था में है उन्हें रणभूमि से दूर ले जा ले गया रास्ते में चेतक ने एक बहुत बड़ी खाई से छलांग लगाकर अपने राजा की दोबारा से जान बचाई और स्वयं मृत्यु के घाट उतर गया।
आगे नदिया पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे उस पार राणा ने सोचा इस बार तब तक चेतक था उस पार
- प्रिय घोड़े चेतक की मृत्यु के पश्चात महाराणा का मन बहुत दुखी हुआ उस समय महाराणा प्रताप के भाई महाराणा का पीछा कर रहे थे बाद में उनको पछतावा हुआ और महाराणा की सहायता की।
- दूसरी और रणभूमि में महाराणा प्रताप के ही हमशक्ल झालामान सिंह ने उनका मुकुट पहनकर मुगलों को भ्रमित किया मुगल ने उनको महाराणा समझ कर उन पर अनेकों अनेक बार किए जिनमें उनकी जान चली गई ।
- इतिहासकारों का मानना है कि इस युद्ध में किसी की भी चीज नहीं हुई ।
- परंतु देखा जाए तो महाराणा प्रताप की युद्ध में जीत हुई क्योंकि अकबर की विशाल सेना का महाराणा की मुट्ठी भर सेना ने डटकर सामना किया और आत्मसमर्पण नहीं किया।
- महाराणा प्रताप ने छापामार युद्ध नीति का सहारा लिया छापामार युद्ध नीति ।
- उनके पिता उदय सिंह ने निजात की थी इसका प्रयोग व स्वयं तो नहीं कर पाए ।
- परंतु महाराणा प्रताप ,महाराणा राज सिंह ,छत्रपति शिवाजी महाराज ने छापामार युद्ध नीति का भरपूर प्रयोग किया।
- चेतक की मृत्यु के पश्चात महाराणा का मन पसीज गया ।
- वह जंगल की ओर रवाना हो गए महाराणा वर्षों तक मेवाड़ के जंगलों में घूमते रहे।
- 30 वर्षों तक प्रयास के बाद भी महाराणा को अकबर बंदी नहीं बना पाया।
- महाराणा ने अपने वंशजों को वचन दिया था कि जब तक वह चित्तौड़ वापस हासिल नहीं कर लेते तब तक वह वालों पर सोएंगे और पेड़ के पत्ते पर खाएंगे।
- यशस्वी एवं प्रतापी महाराणा प्रताप कभी भी मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ के किले को हासिल नहीं कर पाए उनको सम्मान देने के लिए चित्तौड़ के कुछ राजपूत लोग वर्तमान में भी अपने खाने की थाली के नीचे पेड़ के पत्ते पेड़ का पत्ता रखते हैं तथा बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं।
- जंगल-जंगल सिर्फ कर उन्हें घास की रोटी खाना मंजूर था परंतु किसी भी परिस्थिति में अकबर की अधीनता को स्वीकार करना कतई मंजूर नहीं था।
कुंभलगढ़ युद्ध
- महाराणा प्रताप तथा अकबर के सेनापति शाहबाज खान के बीच कुंभलगढ़ का युद्ध हुआ ।
- मेवाड़ पर आक्रमण के लिए अकबर ने तीन बार शाहबाज खान को भेजा।
- सबसे सबसे पहले 1577 में
- दूसरी बार 1578 में तथा
- तीसरी बार 1579
दिवेर का युद्ध
- दिवेर का युद्ध 1582 में हुआ।
- इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन भी कहा गया।
- यह युद्ध मुगलों तथा महाराणा प्रताप के बीच हुआ
- इस युद्ध में मुगलों की हार हुई ।
- अकबर ने स्वयं कभी भी महाराणा प्रताप के साथ कोई युद्ध में लड़ा क्योंकि कहां अकबर पांच फीट का और कहा महाराणा प्रताप सिंह 7 फुट 5 इंच के
अंत में मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण 15 आठ 5 ईसवी में खत्म हुआ महाराणा प्रताप की मृत्यु उनके द्वारा बनाई गई नई राजधानी चावंड में हुई यहां उन्होंने 11 वर्ष राज किया जिसके बाद 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप स्वर्ग सिधार गए ।
महाराणा प्रताप ने कुल 24 वर्षों तक शासन किया 1572 से 1597 तक।
महाराणा प्रताप हमारे समाज के वीर महापुरुष है आज भी इनकी वीर गाथाओं के कारण यह हम सबके बीच अमर है ऐसे महान तेजस्वी महापुरुष को हमारा शत शत नमन जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक निरंतर मुगलों से लड़ने का प्रयास किया और अपने साम्राज्य को स्वतंत्र बनाए रखने में सक्षम हुए।
By Namya katyal
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